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Geet Gawai Utsav 2020 Global Climate Change

Geet Gawai Utsav 2020

Global Climate Change

Harparawri Bhojpuri Songs

2 December 2020

Remarks by High Commissioner Tanmaya Lal

 

माननीय कला और सांस्कृतिक धरोहर मंत्री श्री अविनाश तीलक जी

भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन की अध्यक्षा आदरणीय डॉक्टर सरिता बूधू जी

विभिन्न सरकारी संस्थानों National Heritage Fund, MFDCऔर Socio-Cultural Organizationsके अध्यक्ष और प्रतिनिधि

यहाँ उपस्थित सभी गणमान्य अतिथि

हमारे सभी आदरणीय बुज़ुर्ग

सभी गीथारियन और गुरुवाइन लोग जिन्होंने अभी इतना सुन्दर हर्पर्वरी संगीत प्रस्तुत किया

भाइयों और बहनों

आप सभी को मेरा सादर प्रणाम,

सबसे पहले मैं कहना चाहूँगा कि यह हम सबके लिए एक बहुत ही गर्व का विषय है कि भोजपुरी गीत गवई को यूनेस्को द्वारा विश्व सांस्कृतिक धरोहर की मान्यता मिलने के चार वर्ष पूरे हो रहे हैं.

अभी कल ही हमने वह सुन्दर दृश्य देखा जब सेशेल्स के नए राष्ट्रपति माननीय श्री राम्कलावन का पारम्परिक रूप से आप्रवासी घाट पर स्वागत हुआ.उन्होंने भी जिस उत्साह के साथ उस भोजपुरी गीत संगीत में भाग लिया,वह देखते ही बनता था.

आप्रवासी घाट विश्व इतिहास के एक अहम् पन्ने की याद दिलाता है,जब सैकड़ों हजारों भारतवासियों को हिन्द महासागर का कठिन सफ़र तय करके plantationsमें कठोर परिश्रम करवाने के लिए मॉरिशस लाया गया.मगर वे कठिन परिस्थितियां उन पूर्वजों का मनोबल नहीं तोड़ पायीं.और आज उनकी संताने आज मॉरिशस के विकास में ज़ोर शोर से जुटी हैं.आप्रवासी घाट उन पूर्वजों के साहस,बलिदान और घोर परिश्रम का प्रतीक है.

वहां उतरे अधिकांश लोग भोजपुरी संस्कृति से जुड़े थे |वापस जाना या पीछे छूटे परिजनों को चिट्ठी पत्री भेजना भी बिल्कुल मुश्किल था |ऐसे समय में उनकी यादें,उनके लोक गीत संगीत,उनके रीति रिवाज़,उनकी भाषा,उनके धार्मिक ग्रन्थ,उनके भाईचारे ने उनका साथ निभाया और वे उस मुश्किल समय को पार कर पाए.

और इन लगभग डेढ़ सौ दो सौ सालों के अंतराल के बाद भी आज मॉरिशस में भोजपुरी भाषा,उसके लोक गीत,रीति रिवाज़ और अन्य परम्पराओं का प्रयोग जारी है |यह अपने आप में बहुत प्रेरणादायी है I

भोजपुरी भाषा और बोली सुनने में बहुत मधुर होती है |इसलिए उसमें गाये गए गीत और भी मधुर और मनमोहक होते हैं |

भोजपुरी गीत आज केवल भारत या मॉरिशस में ही नहीं बल्कि फ़िजी,गयाना,त्रिनिदाद और टोबागो,सूरीनाम,जो देश मॉरिशस से लगभग १२,००० किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर या अटलांटिक महासागर में स्थित हैं ;या फिर साउथ अफ्रीका,या यूरोप में हॉलैंड,इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों और कॅरीबीयन देशों के ज़रिये अमरीका और कैनाडा में भी सुनने को मिल सकते हैं |

यहाँ मॉरिशस में आप के और आप जैसे अन्य संस्थानों और मॉरिशस सरकार ने अपने पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों को न केवल जीवित रखने में,बल्कि उसको आगे बढ़ाने और अपनी एक पहचान दिलाने में अमूल्य योगदान दिया है और दे रहे हैं.

इस दिशा में यह निश्चित ही एक अत्यंत अनोखा और महत्त्वपूर्ण initiativeहै और इसलिए मुझे आज यहाँ इस कार्यक्रम में भाग ले कर और भी प्रसन्नता हो रही है Iइस आयोजन के लिए मैं भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन को और डॉक्टर सरिता बूधू जी को बहुत बधाई देता हूँ I

मेरे लिए यह विषय एक विशेष मायने भी रखता है क्योंकि मुझे भारत सरकार की ओर से कुछ वर्ष तक एक Climate Change negotiatorकी तरह काम करने का अवसर मिला I

आप का यह initiativeकई मायनों में एक दूरदर्शी प्रयास है Iक्योकिं यह हमारी प्राचीन सभ्यता,हमारी परम्परा और हमारे पूर्वजों के रहन सहन और सोच को आज की समस्याओं से जोड़ता है Iयह दिखलाता है कि आज के ये प्रश्न या समस्याएँ नई नहीं है और इन पर समाज में सैकड़ों हजारों सालों से चिंतन हुआ है और इनका समाधान ढूँढा गया है Iऔर आने वाली पीढ़ियों को आगाह किया गया है.मगर दुर्भाग्यवश आधुनिक जीवन में हम इन बातों को भूलते से जा रहे हैं.

यह ये भी दिखाता है कि मनुष्य प्रकृति का एक हिस्सा है उस से अलग नहीं है Iभारतीय संस्कृति में प्रकृति (nature)के प्रति असाधारण संवेदनशीलता है.इसमें पृथ्वी को देवी का दर्जा दिया गया है.भारतीय सभ्यता में विशेषकर ग्राम्य जीवन (villages)में वृक्षों,पौधों आदि को घर के अपनों की तरह,बड़े जतन से पालने की परंपरा अभी जीवित है Iगोधन,पशुधन के लिए जो अपनापन और ममता है वह देखते ही बनती है I

आज जब विश्व में पर्यावरण संरक्षण environment protection) की बात होती है तो वह दिखाता है कि आधुनिक समाज मेंविशेषकर पाश्चात्य सभ्यता मेंमनुष्य को प्रकृति से अलग समझा जाता है जो ग़लत है उस विचार में मनुष्य द्वारा प्रकृति पर नियंत्रण और उसे वश में करने और उसके साथ मनमानी करने की सोच है और माना जाता है कि केवल उसी तरह विकास लाया जा सकता है I

इससे स्थिति अब इस हद तक पहुँच चुकी है कि आज मानव जाति के survivalपर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है I

भारतीय संस्कृति में मनुष्य और प्रकृति में एक साझेदारी का सम्बन्ध हैजिसकी आवश्यकता आज विज्ञान भी अनुभव कर रहा है हमारे यहाँ ‘प्रकृतिरक्षति रक्षिता’ की बात की जाती है यानी प्रकृति तब रक्षा करती है जब प्रकृति की रक्षा की जाती है I

हमारी संस्कृति में प्रकृति के साथ विकास की बात होती है जो कि मूलतः सस्टेनेबल डेवलपमेंट (sustainable development) environment protection or conservationसे मेल खाती है.

Folk musicया लोक संगीत किसी भी संस्कृति या kiltirका एक अहम् हिस्सा होता है Iचाहे वह पूर्वी सभ्यताएं हों या आधुनिक परम्पराएँ Iलोक संगीत आम आदमी की daily life,दैनिक ज़रूरतों और काम काज,शादी ब्याह या जन्म आदि विषयों को दर्शाते हैं.

हमारे लोक गीतों में भी प्रकृति का महत्व बहुत स्पष्ट दीखता है Iइन में धरती को अक्सर माता का दर्जा दिया जाता है Iनदियों को भी – जैसे गंगा मैया – कहा जाता है I

यह बताता है कि हमारे पूर्वजों की सोच मनुष्य और प्रकृति की परस्पर निर्भरता के बारे में बिलकुल साफ़ थी.आज विज्ञान भी यही बात करता है.

अनेक धार्मिक ग्रंथों और लोक गीतों में सूर्य,चन्द्रमा,नक्षत्रों,और प्रकृति के निरंतर बदलते अनेक स्वरूपों की भी ईश्वर के विभिन्न पहलुओं के रूप में ही परिकल्पना की गई है.

खेत खलिहान,मिट्टी,गाय बैल,वृक्ष और पेड़ पौधे,बादल,मौसम,बारिश,जल संरक्षण आदि के बारे में अनेक लोक गीतों में सुना जा सकता है Iहलांकि एक ओर आजकल शहरों में हमारे दफ्तरों या factoriesके काम काज पर मौसम और बारिश जैसी चीज़ों का असर शायद कम महसूस होता है,मगर यह सच नहीं है I

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में हम सभी पर किसी न किसी तरह से – खेती बाड़ी,प्राकृतिक आपदाएं जैसे तूफ़ान,बाढ़,सूखा,जंगलों में आग, landslides, desertification –आदि असर डाल रहे हैं.इन का सीधा प्रभाव समाज और देशों की ख़ुशहाली,अर्थ व्यवस्था (economy), jobsऔर living conditionsपर पड़ रहा है I

जहां लोक गीत इन विषयों को गाँव या शहर के स्तर पर देखते हैं,आज हमें मालूम है कि वही प्रश्न पूरी दुनिया को प्रभावित करते हैं.

आज युवा पीढ़ी में बहुत कम लोगों को यह अहसास होगा कि उनके अपने गीतों और कहानियों में इन विषयों की चर्चा की गई है जिनका आज भी उतना ही महत्व है और विज्ञान भी आज वही सीख दे रहा है.

आज दुनिया भर में यह देखा जा रहा है कि युवा पीढ़ी धर्म और संस्कृति के प्रति उदासीन सी हो रही है और जीवन में संतुलन बिगड़ गया है.वहीं इस नए दौर में सोशल मीडिया एक बहुत प्रभावी माध्यम है जिसके द्वारा युवा पीढ़ी तक पहुँचना बहुत आसान भी हो गया है.

आज विज्ञान का युग है और किसी भी विचार के प्रति युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए यह आवश्यक है कि वह विज्ञान और तर्क की दृष्टि से खरा उतरे.

आज के globalizationऔर western educationके दौर में नई पीढ़ी western cultureके प्रभाव में आ चुके हैं.इसके चलते उन्हें लगता है कि liberty, equality, human rights, secularism, sustainable development, good governance, environment protectionजैसे सिद्धांत शायद उनकी अपनी सभ्यता या परंपरा से मेल नहीं खाते.

साथ ही साथ नई पीढ़ी हर जगह ही अपनी जड़ों की तलाश में भी है और रीति रिवाज़ों आदि के बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक है.इन बातों को नई पीढ़ी तक ले जाने में हमें अपनी एप्रोच में इस के अनुसार परिवर्तन करना होगा.हमें युवा पीढ़ी को याद दिलाना होगा कि हमारी मानसिकता आरंभ से ही जिज्ञासु और वैज्ञानिक रही है.

अगर हम gender equalityकि चर्चा करें तो देखेंगे कि प्राचीन काल में नारियाँ,गंभीर चर्चा में पुरुषों की तरह ही भाग लेती थीं.इसका एक और अद्वितीय उदाहरण अर्धनारीश्वर की असंभव सी लगने वाली कल्पना में दिखाई पड़ता है. देवता गण बिना अर्धांगिनी के अपूर्ण हैं जैसे – ब्रह्मा-सरस्वती,शिव-पार्वती,विष्णु-लक्ष्मी,और सिया-राम,राधा-कृष्ण

(यहाँ संबंध परिभाषित करना कठिन है, पर स्त्री तत्त्व की प्रधानता तो स्पष्ट है ही)

यह सच है कि बाद में नारियों को पुरुषों की अपेक्षा दूसरे दर्जे का स्थान दिया गया.मगर अब यह स्थिति तेज़ी से सुधर रही है और स्त्रियों के लिए वे सब द्वार खुले हैं जो पुरुषों के लिए खुले हैं.

Human Rights (मानवाधिकारों) के विषय में हमारी शब्दावली में फ़्रेंच या अमरीकी संविधान से अलग है Iपर हमारी सारी शिक्षा मानवीय समता,करुणा,न्याय और प्रत्येक जीव का आदर-सम्मान आदि भावों से भरी हुई है.

Perhaps not many may know that in 1947, it was the Indian woman delegate Mrs Hansa Mehta who insisted that the language of the very first Article of the United Nations Declaration on Human Rights should be changed from ‘All Men are born free and equal’ to ‘All human beings are born free and equal’. This was done.

इसी तरह secularism के कांसेप्ट के बारे में यदि हम बात करें तो हालाँकि secularismकिसी शब्द के रूप में हमारे यहाँ अपरिचित हैकिन्तु हमारी सभ्यता में ‘सर्व धर्म समभाव’ के रूप में यह अवधारणा हमारे लिए चिर परिचित है I

Good governanceके विषय में जब बात होती है तो हमारी संस्कृति में इसे भी हजारों सालों से देखा जा सकता है यह एक बहुत ही व्यापक परिकल्पना थी I

इस लिए यह जानना और समझाना बहुत आवश्यक है कि आज के आधुनिक जीवन मूल्यों और हमारे पारंपरिक सिद्धांतों और धर्म के मूल्यों में मूलतः सामंजस्य हैविरोध नहीं I

It is, therefore, important for us to explore and discover our own civilizational heritage and understand that there is no conflict between the seemingly modern values of human rights or gender equality or environment protection or secularism or good governance or equity or freedom of thought and expression with our ancient heritage and traditions. Our younger generation must also be made aware of this.

While some social practices that have evolved may be at odds with this core identity of unity in diversity and create divisions, these are being fought and overcome.

May I also add that our civilizational heritage is one that has a global vision at its core. It understands the fundamental unity of all creation and respects all its diversity.

Ayurveda and Yoga are now some of the more popular practices which are based on this holistic understanding of self, our surroundings and our cosmos.

It respects and accepts all different thoughts, philosophies and ideologies. It brings together and produces harmony between people from different geographies, ethnicities, speaking different languages, practicing different lifestyles and cultures.

हमें युवा वर्ग को उनकी अपनी सभ्यता से फिर परिचय कराना होगा.उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करना होगा कि आधुनिक युग में भी समसामयिक प्रश्नों के विषय में उनकी संस्कृति और लोक परंपरा बहुत समृद्ध है.

अंत में मैं कहना चाहूँगा

मोरिस में हम आइली दू बरस हो गईल.अब दू तिन दिन में हम स्वीडन जाइब जहाँ हमार पोस्टिंग होइल बा.

आप लोगन के बीच में रहके हम बहुत कुछ सीख्ली.हेयंआ आके हमनी एगो अपनापन महसूस कैली जा.आप लोगन के प्यार और आशीर्वाद हमके भा देलक.हम और हमार पत्नी आप लोग के बहुत धन्यवाद करत हैं.

ई सच बा

भासा गयी तो संस्कृति भी गईल.संस्कृति गईल तो साथै साथ पहचान भी गईल.

भोजपुरी खूब जोली बा.बहुत मधुर भासा बा.ई तोहार पहचान हा.और आशा करत हैं

ई सुन्दर संस्कृति,विरासत और भासा अगले पीढ़ी में जम के रही.

In this context today’s event has been very timely and significant. I hope that such initiatives will continue in future and reveal and transmit the different aspects of our cultural heritage especially to the younger generation.

इन्हीं शब्दों के साथ मैं आपके सबके प्रति फिर आभार प्रकट करना चाहता हूँ.और बहुत शुभकामनाएं देता हूँ.जय मॉरिशस.

बहुत धन्यवाद

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