media-centre-icon Statements

स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा का अनावरण

 

स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा का अनावरण

Hon. President of the Republic of Mauritius

मॉरिशस गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति महोदय,

मान्यवर श्री ननकू जी,

अन्य सभी गणमान्य अतिथि,

यहाँ उपस्थित आप सभी लोगों को मेरा नमस्कार,

 

First of all, may I express my gratitude at being invited to this evening’s special event that is being organized to celebrate the life of Swami Vivekananda.

 

इस आमंत्रण के लिए मैं आप सब का आभारी हूँ

आज हम यहाँ एक असाधारण और महान शख्सियत - स्वामी विवेकानंद का स्मरण करने के लिए एकत्रित हुए हैं. उन्होंने अपने छोटे जीवनकाल में ही, न केवल भारत में, बल्कि विश्व में ख्याति प्राप्त की I यहां मॉरिशस में भी वे अपरिचित नहीं हैं I 

भारत ने अपने लम्बे हज़ारों सालों के इतिहास में कई उतार चढ़ाव देखे हैं I उत्थान की चोटियाँ और पतन की गहराइयाँ दोनों देखी हैं. समय समय पर उसने ऐसी विभूतियों को जन्म दिया है जिन्होंने गिरते हुए विश्व और तेज़ी से पतन की ओर जाती हुई मानवता को नया सन्देश देते हुए इतिहास को नई दिशा दी है.

आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में दो ऐसी ही महान विभूतियों का जन्म हुआ जिन्होंने न केवल भारत के पुनरुत्थान का असाध्य सा लगने वाला कार्य किया बल्कि विश्व की चेतना को झकझोर कर उसे नई समझ, नई उदारता दी.

ये विभूतियाँ थीं विवेकानंद और महात्मा गाँधी. दोनों ने अध्यात्म की भूमि पर पैर जमाए रखते हुए अथक कर्मठता का आह्वान किया.

आज यहां हम स्वामी विवेकानन्द को स्मरण कर रहे हैं I उनका जन्म एक ऐसे समय हुआ जब भारत एक पराधीन राष्ट्र था I विवेकानंद 40 वर्ष से कम जिए. पर इतनी सी उम्र में ही उन्हों ने जो कुछ किया, वह अद्भुत, अकल्पनीय है. कितने सारे विषयों में वे पारंगत थे यह देख कर हैरानी होती है - पूरबी और पश्चिमी दोनों दर्शनशास्त्र (philosophy), अनेक धर्म, इतिहास, समाज-शास्त्र, कला arts, साहित्य (संस्कृत, बांग्ला, पाश्चात्य) literature, वैज्ञानिक प्रगति scientific progress, आदि सब में उनकी गहरी रूचि थी और सब पर असाधारण पकड़. 

उनकी संस्मरण शक्ति असाधारण थी. उनकी याददाश्त से सम्बंधित हैरान करने वाले अनेक क़िस्से हैं जिन्हों ने यूरोप और अमरीका के उनके प्रवास ने वहां के बड़े बड़े शीर्ष विद्वानों को आश्चर्य चकित कर दिया था.

विवेकानंद एक charismatic leader थे I वे अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्त्व के मालिक थे और उनकी वक्तृत्व-शक्ति अद्वितीय थी.

He was a great orator, thinker and leader.

उनकी विद्व्त्ता और वक्तृत्व-शक्ति से यूरोप और अमरीका के विद्वान् उनके आगे नतमस्तक हो गए I कुछ की तो यहाँ तक धारणा थी कि 1893 में शिकागो में जो पार्लियामेन्ट ऑफ़ रिलीजन हुआ I उसका जो उद्देश्य था वह विवेकानंद के छोटे भाषण से प्राप्त हो चुका है.

उनके भाषणों और उनके साथ चर्चाओं से वे इतने प्रभावित हुए की अमरीका की दो आई वी लीग विष्वविद्यालयों - हार्वर्ड और कोलंबिया - ने उन्हें अपने पूरबी दर्शन ओर अध्ययन संस्थानों की अध्यक्षता सँभालने का ऑफर दिया जो वे अपने अन्य मिशनों के चलते स्वीकार नहीं कर पाए.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के प्रख्यात प्रोफेसर विलियम जेम्स तो उनसे इतने प्रभावित थे की उनके उद्गार इस तरह व्यक्त हुए, "वह व्यक्ति अपनी वक्तृत्वशक्ति के कारण स्पष्ट ही एक मूर्तिमान आश्चर्य है. वह मानवता के लिए गौरव का विषय है."

विवेकानंद अपने जीवन के लगभग बीस वर्ष आयु में ही ब्राह्मोसमाज, केशबचन्द्र सेन के नया विधान, अन्य साधु संतों की संगत, पूरबी धर्म ग्रन्थों और पश्चिमी दार्शनिकों का गहन अध्ययन कर चुके थे I इन सारे धार्मिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक, सामाजिक प्रभावों को ग्रहण करते हुए वे इस बेचैनी वाले प्रश्न पर आकर रुके कि कोई तो ऐसा मिले जो कह सके कि उसने ईश्वर के साक्षात् दर्शन किए हैं.

अनेक निराशाओं के बाद वे 1881-1882 में भगवन रामकृष्ण के पास पहुंचे और सीधे वही प्रश्न पूछा, "क्या अपने भगवान को देखा है?" पहली बार उन्हें उत्तर मिला, "हाँ। में उसे इसी तरह देखता हूँ जैसे तुम्हें, अगर कुछ है तो उसे तुम से भी अनंत गुणा तीव्रता के साथ." उन्हों ने रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया.

विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की विषदता और उदारता से पश्चिमी जगत का परिचय कराया. उनके परिमार्जित धर्म को नया हिंदू धर्म कहा गया. आज के हिन्दू नौजवान धर्म की समझ इसी से ग्रहण करते हैं.

सार रूप में यह इतना ही कहता है कि हर जीव में परमात्मा का अंश है. इस आंतरिक ईश्वरत्व को, अंतर और बाहर की प्रकृति को वश में रखते हुए, जीवन में अभिव्यक्त कर पाना जीवन का ध्येय है. इसे आप चाहे कर्म से करें, या भक्ति से या मन को साध कर या फ़िलोसोफ़ी से - या इनमें से एक से, कई से या सबसे एक साथ करते हुए.

यही पूरा का पूरा धर्म है, यही मत है, यही धर्म सिद्धांत है. कर्म कांड, धर्म ग्रन्थ, पूजास्थल, मूर्ति आदि सब बाद की चीज़ें हैं. सारी नदियां एक समुद्र में ही मिलती हैं.

देश में विवेकानंद गरीबी दूर करने और सामाजिक कुरीतियों का परिष्कार करने के लिए कार्य रत रहते थे. सामाजिक उत्थान, शिक्षा, विशेषकर विज्ञान और टेक्नोलॉजी की शिक्षा और समाज में राष्ट्रीयता की भावना को जगाना उनके मन के अत्यंत करीब थे.

कम लोगों को यह मालूम है कि भारत के शीर्षस्थ विज्ञान और टेक्नोलॉजी शिक्षण संस्थान - इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस , बंगलौर - की स्थापना के पीछे जमशेदजी टाटा के साथ विवेकानंद की भी प्रेरणा थी. टाटा इस इंस्टीट्यूट के लिए विवेकानंद का मार्गदर्शन चाहते थे पर वह अपने मिशनों के चलते यह आग्रह स्वीकार नहीं कर सके.

भारत में राष्ट्रीय चेतना जगाने में भी विवेकानंद का असाधारण योगदान है. वे स्वतंत्रता अभियान में सबसे पहले की प्रथम पंक्ति के व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के अपने महान इतिहास, अपनी विश्व-बधुत्व की श्रेष्ठ परंपरा, अपनी विविधता में सौहार्द्र के अनूठेपन की चर्चा की.

एक बुझे हुए देश को गुलामी से आज़ाद होने के सपने दिखाए और देशवासियों को अपने पर गर्व करना सिखाया.

आज भी हम अपने चारों तरफ़ ग़रीबी, असमानता, असहनशीलता, युवाओं में दिशाहीनता और निराशा का जो माहौल देखते हैं उसमें स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गए मार्ग की बहुत अहमियत है I यह आवश्यक है की युवा पीढ़ी भी ऐसे महान व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी ले और उन से सीखे I

It is for this reason that initiatives such as these are very important in current times. I once again thank the organisers for arranging this event and for the important contribution that they are making to causes that are important for our society.

 

Thank you

 

धन्यवाद

 

 

Go to Navigation