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Urdu Speaking Union

Urdu Speaking Union

20 July 2019

Remarks by High Commissioner Tanmaya Lal

Hon. former President Cassam Uteem Saheb,

Hon.former Vice PresidentMr. Raouf Bundhun Saheb,

Hon. Minister of Health & Quality of Life Dr.Anwar Husnoo Saheb,

President of Urdu Speaking Union Mr. Shehzaad Ahmad Saheb,

Vice President of Urdu Speaking Union Mr. Goodur Saheb,

Vice President of Jummah Masjid,

Fellow diplomats,

Colleagues,

Distinguished guests,

आप सब को मेरा आदाब ।

I thank the Urdu Speaking Union for inviting me to join all of you at this event. I would like to congratulate them for their continuing efforts to promote the Urdu language.

आपकी इजाज़त से मैं उर्दू ज़ुबान के बारे में कुछ विचार आपके सामने रखना चाहता हूँ ।

उर्दू एक बेहद मीठी और दिलकश ज़ुबान है । उर्दू साहित्य अनेक विधाओं में बहुत समृद्ध है । विशेषकर काव्य में तो ग़ज़ल उर्दू की एक ऐसी विधा है जो विश्व साहित्य में unique है । उर्दू शायरी के मुशायरे में जो समा बनता है, वो कुछ और ही होता है ।

उर्दू भारत में पैदा हुई, इसलिए यह महज़ इत्तिफ़ाक नहीं है कि ग़ज़ल की कई बहरें भारत की अन्य भाषाओं में भी आसानी से अपना ली गई हैं जैसे कि हिंदी, गुजराती, मराठी और पंजाबी में ।

उसी तरह ग़ज़ल English या French भाषाओं में नहीं लिखी जाती क्योंकि इन भाषाओं की प्रकृति उर्दू की ज़मीन से काफ़ी दूर है ।

दुनिया में हर चीज़ की तरह भाषा भी हर समय evolve होती रहती है । ये कोई static चीज़ नहीं होती । साथ ही कोई भी भाषा isolation में नहीं रहती । हर भाषा या ज़ुबान अपने आसपास के समाज में पलती-बढ़ती है और अन्य भाषाओं से उसका आदान-प्रदान चलता रहता है । यहाँ मॉरिशस में ही अगर हम देखें तो Creole भाषा यहाँ की 400 साल की migration history से एकदम जुड़ी हुई है और यहाँ की अलग पहचान है ।

उसी तरह उर्दू ज़ुबान भी भारत में पिछले क़रीब 800 साल में पनपी और बढ़ी और अनेक influence इसमें समाए । 13 वीं सदी से ही Central Asian शासकों के साथ भारत में फ़ारसी का प्रभाव हिंदी पर पड़ने लगा था । फ़ारसी को एक elite या Court Language का दर्जा मिला । वहीं उत्तर भारत में हिन्दवी या हिन्दुस्तानी और हैदराबाद में दक्खनी आम आदमी की भाषा बनी । उसी समय अमीर ख़ुसरो ने फ़ारसी और हिन्दवी दोनों में बेहतरीन poetry लिखी ।

यह कहना मुश्किल है कि अमीर ख़ुसरो की अमर रचना “छाप तिलक सब छीनी री मो से नैना मिलायके” हिंदी है या उर्दू । इसी तरह संत कबीर की 15 वीं सदी की रचना “हमन तो इश्क़ मस्ताना” हिंदी या उर्दू दोनों की मानी जा सकती है ।

उर्दू की पहचान धीरे-धीरे बनी । उर्दू तुर्की भाषा का शब्द है जिसके मायने हैं शाही शिविर या ख़ेमा । दिल्ली में शाहजहाँ द्वारा बनाया गया लाल क़िला उर्दू ए मुअल्ला कहलाया गया जिसका मतलब एक बड़ा शाही पड़ाव है । जहाँ मुग़लों की court language फ़ारसी थी वहीं दिल्ली में लाल क़िले के आस पास आम आदमी द्वारा बोली जाने वाली भाषा ज़बान ए उर्दू ए मुअल्ला या उर्दू कहलाई । इसी दौरान दक्षिण से आने वाले वली दक्खिनी 18 वीं सदी में उर्दू के पहले कवि माने जाते हैं।

धीरे-धीरे 19 वीं सदी में अंग्रेजों के शासन के दौरान हिंदी और उर्दू को दो अलग-अलग scripts में लिखने पर ज़ोर दिया जाने लगा और अलग-अलग शब्दों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाने लगा । कुछ लोग इन भाषाओं को धर्म से भी जोड़ने लगे । दोनों भाषाओं में फ़ासला कुछ हद तक बढ़ा ।

लेकिन उर्दू और हिंदी में verbs और pronouns एक ही हैं; उनकी काफ़ी vocabulary भी बहुत हद तक common है ।

उर्दू आज Indian Subcontinent और मॉरिशस के अलावा कई देशों में बोली जाती है । ऐसा माना जाता है कि उर्दू भाषा के करीब 65 million लोग native speakers हैं जिनमें से 50 million भारत में हैं । उर्दू भारतीय संविधान की official भाषाओं में से एक है । भारत के अनेक राज्यों में भी उर्दू का एक खास सरकारी दर्जा है ।

उर्दू के प्रसार के लिए भारत सरकार कई कदम उठाती रही है । हैदराबाद में मौलाना आज़ाद उर्दू विश्व विद्यालय एक central यूनिवर्सिटी है जिसके Distance Learning Department के अंतर्गत देश में 9 regional centres हैं । आन्ध्र प्रदेश के कुरनूल में डॉ.अब्दुल हक़ उर्दू यूनिवर्सिटी है । भारत के कई कॉलेज में उर्दू ज़ुबान और साहित्य को पढ़ाने के लिए departments हैं । मॉरिशस में अनेक लोग अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी और दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिक यूनिवर्सिटी से उर्दू पढ़कर यहाँ कार्यरत हैं । इसके अलावा भारत में कई और इस्लामिक स्कूल्स भी उर्दू पढ़ाने में active हैं ।

अक्सर भाषाओं को धर्म से जोड़ने की कोशिश की जाती है मगर असलियत कुछ और होती है ।

अगर हम उर्दू और हिंदी को ही देखें तो पाएँगे कि उर्दू शायरी फ़िराक गोरखपुरी, कृष्ण बिहारी नूर, जगन्नाथ आज़ाद, ब्रजनारायण चकबस्त, आनंद नारायण मुल्ला, हरिचंद अख्तर, महिंदर सिंह बेदी सहर जैसे शायरों के बिना अधूरी रहेगी ।

इसी तरह उर्दू अफ़साने में मुंशी प्रेमचंद, सआदत हसन मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, इस्मत चुग़ताई और गोपीचंद नारंग का विशेष नाम है । हिंदी में भी एक से बढ़कर एक मुस्लिम कवि और लेखक हुए हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य का रंग फीका पड़ने लगेगा । जैसे कि रहीम, रसखान, जायसी, राही मासूम राजा या गुलशेर ख़ानशानी ।

यहाँ मैं दो छोटी ग़ज़लों का उदाहरण दूँगा :

     जनाब राजेश रेड्डी की

“हूँ वही लफ़्ज़, मगर और मआनी में हूँ मैं

अबके क़िरदार किसी और कहानी में हूँ मैं“

     जनाब माधव कौशिक की

“आता ही नहीं कोई, किसी फूल से मिलने

गुलशन में बहारों का पता अब भी वही है“

भारत में मुरादाबाद शहर जहाँ मैं पैदा हुआ, अपनी हिन्दुस्तानी ज़ुबान के लिए जाना जाता है ।

आजकल के महान शायर निदा फ़ाज़ली का असाधारण काव्य भी सामान्य भाषा में है । उनकी एक ग़ज़ल है :

“हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी

जिसको भी देखना हो कई बार देखना“

कहना मुश्किल है कि इस ज़ुबान को क्या नाम दें । इसी सादगी, सरलता और open quality के ज़रिए ही कोई भी भाषा या ज़ुबान पनपती है और दूर तलक जाती है ।

Distinguished guests,

Friends,

I am also grateful to be invited for the release of the Urdu translation of the book “Taqdir- Ek Zindagi, Ek Kismat” by Hon. Former Vice President Mr. Raouf Bundhun that has been done by Enayat Hussein Edun Saheb and Mrs. Rehana Edun.

All of you know Mr. Raouf Bundhun very well. He is a very eminent and respected personality with a wide ranging experience.

I have had the good fortune of knowing him for the past few months but have been deeply impressed by his wisdom, perspective and balanced point of view. He is a wonderful guide to all of us. He is well read and widely travelled and is a link between the local and the global and between the past and the present.

Through his numerous contributions, including to the Governance of this country, he has helped build Mauritius intoa beautiful and diverse rainbow nation.

I am therefore privileged to be here on this important occasion for the release of the Urdu translation of his book.

May I also congratulate all students and parents and teachers whose work in Urdu being acknowledged here today.

To conclude, I once again congratulate the Urdu Speaking Union for organizing this event and thank them for inviting me and my colleagues to join you here today.

Thank you.

शुक्रिया

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